HARIDWAR KI GUNJ
(विभास सिन्हा) हरिद्वार। छिप छिप के अश्रु बहाने वालों, व्यर्थ में मोती लुटाने वालो।कुछ सपनों के मर जाने से,यह जीवन नहीं मरा करता.... के रचनाकार, गीतकार, साहित्यकार और पद्मभूषण से सम्मानित कायस्थ रत्न कवि गोपालदास नीरज का लंबी बीमारी के बाद देर शाम निधन हो गया। पुत्र शशांक प्रभाकर ने बताया कि आगरा में प्रारंभिक उपचार के बाद उन्हें कल दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया था लेकिन डॉक्टरों के अथक प्रयासों के बाद भी उन्हें नहीं बचाया जा सका। उन्होंने बताया कि उनकी पार्थिव शरीर को पहले आगरा में लोगों के अंतिम दर्शनार्थ रखा जाएगा और उसके बाद पार्थिव देह को अलीगढ़ ले जाया जाएगा जहां उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
कवि गोपालदास सक्सेना ‘नीरज’ का जन्म कायस्थ परिवार में 04 जनवरी 1925 को इटावा जिले के पुरावली गाँव में हुआ था। मात्र 6 वर्ष की आयु में उनके पिता बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना का निधन हो गया था। उन्होंने 1942 में एटा से हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। शुरुआत में इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया उसके बाद दिल्ली में विभिन्न स्थानों पर टाइपिस्ट या क्लर्क की नौकरी कीं। नौकरी के साथ प्राइवेट परीक्षाएँ देकर 1949 में इण्टरमीडिएट, 1951 में स्नातक और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से स्नातकोत्तर किया।
उन्होंने कुछ समय तक मेरठ के प्रसिद्ध मेरठ कॉलेज में हिन्दी के व्यायाता के पद पर अध्यापन कार्य भी किया। उसके बाद वह अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हो गये और स्थायी आवास बनाकर रहने लगे। इस बीच उनकी काव्य प्रतिभा की लोकप्रियता मुंबई तक पहुंच गयी। उन्हें फिल्म जगत ने गीतकार के रूप में गीत लिखने का निमन्त्रण दिया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। उन्होंने बरसों तक फिल्मों में गीत लेखन का काम किया। मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों के गीत बेहद लोकप्रिय हुए।
उनके लिखे कुछ गीत जैसे कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे, देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा, शोखियों में घोला जाये फूलों का शवाब, ऐ भाई जरा देख कर चलो, दिल आज शायर है गम आज नग्मा है, आज मदहोश हुआ जाए रे मेरा मन, लिखे जो खत तुझे, बहुत मशहूर हुए। किन्तु फिल्मी कान्दिगी में भी उनका मन ज्य़ादा नहीं रमा और वह फिर गृहनगर लौट गये। नीरज को कविता लेखन से अधिक लोकप्रियता हिन्दी सिनेमा के गीतकार के रूप में मिली। उन्हें उनकी लेखनी के लिए कई सम्मान मिले। उन्हें 1991 पद्मश्री और 2007 में पद्मभूषण सम्मान से नवाजा गया था। उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें यश भारती सम्मान से भी सम्मानित किया था। नीरज को तीन बार फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला।
(विभास सिन्हा) हरिद्वार। छिप छिप के अश्रु बहाने वालों, व्यर्थ में मोती लुटाने वालो।कुछ सपनों के मर जाने से,यह जीवन नहीं मरा करता.... के रचनाकार, गीतकार, साहित्यकार और पद्मभूषण से सम्मानित कायस्थ रत्न कवि गोपालदास नीरज का लंबी बीमारी के बाद देर शाम निधन हो गया। पुत्र शशांक प्रभाकर ने बताया कि आगरा में प्रारंभिक उपचार के बाद उन्हें कल दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया था लेकिन डॉक्टरों के अथक प्रयासों के बाद भी उन्हें नहीं बचाया जा सका। उन्होंने बताया कि उनकी पार्थिव शरीर को पहले आगरा में लोगों के अंतिम दर्शनार्थ रखा जाएगा और उसके बाद पार्थिव देह को अलीगढ़ ले जाया जाएगा जहां उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
कवि गोपालदास सक्सेना ‘नीरज’ का जन्म कायस्थ परिवार में 04 जनवरी 1925 को इटावा जिले के पुरावली गाँव में हुआ था। मात्र 6 वर्ष की आयु में उनके पिता बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना का निधन हो गया था। उन्होंने 1942 में एटा से हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। शुरुआत में इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया उसके बाद दिल्ली में विभिन्न स्थानों पर टाइपिस्ट या क्लर्क की नौकरी कीं। नौकरी के साथ प्राइवेट परीक्षाएँ देकर 1949 में इण्टरमीडिएट, 1951 में स्नातक और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से स्नातकोत्तर किया।
उन्होंने कुछ समय तक मेरठ के प्रसिद्ध मेरठ कॉलेज में हिन्दी के व्यायाता के पद पर अध्यापन कार्य भी किया। उसके बाद वह अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हो गये और स्थायी आवास बनाकर रहने लगे। इस बीच उनकी काव्य प्रतिभा की लोकप्रियता मुंबई तक पहुंच गयी। उन्हें फिल्म जगत ने गीतकार के रूप में गीत लिखने का निमन्त्रण दिया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। उन्होंने बरसों तक फिल्मों में गीत लेखन का काम किया। मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों के गीत बेहद लोकप्रिय हुए।
उनके लिखे कुछ गीत जैसे कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे, देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा, शोखियों में घोला जाये फूलों का शवाब, ऐ भाई जरा देख कर चलो, दिल आज शायर है गम आज नग्मा है, आज मदहोश हुआ जाए रे मेरा मन, लिखे जो खत तुझे, बहुत मशहूर हुए। किन्तु फिल्मी कान्दिगी में भी उनका मन ज्य़ादा नहीं रमा और वह फिर गृहनगर लौट गये। नीरज को कविता लेखन से अधिक लोकप्रियता हिन्दी सिनेमा के गीतकार के रूप में मिली। उन्हें उनकी लेखनी के लिए कई सम्मान मिले। उन्हें 1991 पद्मश्री और 2007 में पद्मभूषण सम्मान से नवाजा गया था। उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें यश भारती सम्मान से भी सम्मानित किया था। नीरज को तीन बार फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला।
Post A Comment:
0 comments so far,add yours