HARIDWAR KI GUNJ
(गगन शर्मा) हरिद्वार। जी हाँ, कुछ ये ही हाल आर टी ओ, सीपीयू और उत्तराखंड पुलिस का है। कभी हाई कोर्ट तो कभी सुप्रीम कोर्ट आदेश जारी करती हैं कि वाहनों के शीशो पर काली फ़िल्म हो तो उस पर जुर्माना लगाया जाए। तो अब तक यदि 30 % कार, मेटाडोर, बस आदि वाहनों पर काली फिल्म चढ़ी हुई है या बाइक्स के सायलेंसर मोडीफाई करा कर पटाखे चलाते हैं, या बाजार / हॉस्पिटल के पास सायलेंसर से पटाखे फोड़ते है तो उसके पीछे की वजह मंजिल पर पहुँचने से पहले खुद को विजेता घोषित करने जैसा ही हैं। यदि समाज का कोई जिम्मेदार नागरिक पुलिस की सहायता के लिए या समाज की पीड़ा को देखकर सीपीयू या पुलिस से किसी बाईक /कार या अन्य वाहन का नम्बर देकर कठोर कार्यवाही की अपेक्षा करे तो उसे निराशा ही हाथ लगती है। क्योंकि कई बार इनकी सुस्त कार्य शैली के कारण पुलिस/सीपीयू शिकायत कर्ता से अपेक्षा करती है कि वो अपने दैनिक कार्य छोड़कर यातायात का नियम तोड़ने वाली गाड़ी पकड़वाने में मदद करे। जबकि यदि पुलिस /सीपीयू चाहे तो नम्बर प्लेट के आधार पर स तक पहुंच सकती हैं। अब इन्हे कौन समझाये कि सफलता कोई रसगुल्ला नही जो आपके लिए प्लेट में चम्मच साथ मिलेगा, उसके लिए दूसरों पर निर्भरता को त्याग कर खुद ही दिन रात एक करनी पड़ती है। यातायात के नियम प्रभावी न होने कारण सड़को पर स्टाइलिस नम्बर वाली बाइक, वी आई पी स्टीकर वाली कारे, ब्लैक फ़िल्म वाले वाहन और पटाखे वाली बाइक सड़को पर बेख़ौफ़ घूमती हुई अन्य जिलों और राज्यो में घूमती है। इससे क्या साबित होता हैं ? कि किसी भी नियम का पालन कराने के लिये बहाने नही कर्मठता की जरूरत होती है।
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