HARIDWAR KI GUNJ
(अब्दुल सत्तार-वरिष्ठ सम्पादक) हरिद्वार। मुस्लमानो के सबसे बडे त्यौहार ईद के बाद साल की दूसरी ईद जिसको अरबी जबान मे ईदुलजुहा या ईदुल अजहा कहते है, और साधारण जबान मे बकरीद कहते है, जो मीठी ईद के पूरे 2 माह पूरे होने के बाद आती है, मीठी ईद रमजान के पूरे 30 रोजे रखने के बाद आती है, और बकरीद मे लोग ईदगाह मे नमाज अदा करके कुरबानी करते है, बकरीद के दिन ही हज के लिए गये हाजी लोग सऊदी अरब के शहर मक्का मे हज करते है, बकरीद के दिन ही हज होता है, बकरीद इस्लाम मजहब के प्रोफीट नबी हजरत ईब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है, यानी खुदा ने अपने नबी को कहा था, कि मेरी राह मे अपने बेटो की कुर्बानी दो, जो केवल खुदा ने अपने नबी की परीक्षा के लिए ये बात कही थी, जिस समय नबी इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपने बेटो को जमीन पर लेटा कर कुर्बानी देने के लिए चाकू चलाया तो उस चाकू के नीचे से नबी इब्राहीम के बेटे नही थे, बल्कि एक दुम्बा खुदा ने रखवा दिया था, और वो चाकू उस दुम्बे पर चल गया था, बस तब से लेकर आज तक कुर्बानी इस्लाम मजहब का हिस्सा बन गयी, कुर्बानी केवल ऊँट, भैसा, बकरा, दुम्बा इन्ही के नस्ल के पशुओं की ही होती है, और किसी पशु की कुर्बानी नही होती है, और किसी पशु की कुर्बानी जायज नही है, मै मुस्लिम समाज के लोगो से अपील करता हूँ, कि ईदुलजुहा का त्यौहार मनाये खुशी से लेकिन समुदाय की आस्था का ध्यान रखे , कुर्बानी के पशु के अवशेष आदि को नगर निगम के द्वारा भेजे वाहनो मे ही डाला ईधर उधर सडको रास्तो खुले मे ना डाले, खुले मे पशु जिबाह ना करे, इस्लाम मजहब एक शान्ति का मजहब है, जो नबी ए पाक सल्लल्लाहु अलैही वस्सलम का लाया हुआ है, और हम उसी नबी के मानने और चाहने वाले है, जिस नबी के ऊपर रोजाना रास्ते से गुजरते हुए कूडा डालती थी, एक दिन नबी ए पाक सल्लल्लाहु अलैही वस्सलम के ऊपर कूडा नही डाला गया तो आपने आस पडोस के लोगो से पूछा कि आज बुढियां ने कूडा नही डाला तो लोगो ने बताया की बुढियां सख्त बीमार है, आप ये सुनते ही बुढियां के पास हाल चाल जानने पहुँचे, और बुढियां को आवाज दी, बुढियां ने कहा कौन आपने बताया मै मुहम्मद ये सुनकर बुढी को बडा अहसास हुआ कि मै रोजाना कुडा डालती थी, और आप मुझे पूछने आ गये और ये देखने के लिए की दवा वगैरह की आवश्यकता तो नही है, तो इस्लाम मजहब को भाई चारे प्यार मुहब्बत का मजहब है, यही इस्लाम सिखाता है, आपस मे एक दूसरे के मजहब को बुरा ना कहो, तो इसलिए मुस्लमानो हम उसी नबी के चाहने वाले है, जिसने परेशानियों मुसीबत मे भी सब्र किया है, तो कुर्बानी करते समय दूसरे समुदाय की आस्थाओं का भी ख्याल रखे यही इस्लाम मजहब की पहचान है।
(अब्दुल सत्तार-वरिष्ठ सम्पादक) हरिद्वार। मुस्लमानो के सबसे बडे त्यौहार ईद के बाद साल की दूसरी ईद जिसको अरबी जबान मे ईदुलजुहा या ईदुल अजहा कहते है, और साधारण जबान मे बकरीद कहते है, जो मीठी ईद के पूरे 2 माह पूरे होने के बाद आती है, मीठी ईद रमजान के पूरे 30 रोजे रखने के बाद आती है, और बकरीद मे लोग ईदगाह मे नमाज अदा करके कुरबानी करते है, बकरीद के दिन ही हज के लिए गये हाजी लोग सऊदी अरब के शहर मक्का मे हज करते है, बकरीद के दिन ही हज होता है, बकरीद इस्लाम मजहब के प्रोफीट नबी हजरत ईब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है, यानी खुदा ने अपने नबी को कहा था, कि मेरी राह मे अपने बेटो की कुर्बानी दो, जो केवल खुदा ने अपने नबी की परीक्षा के लिए ये बात कही थी, जिस समय नबी इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपने बेटो को जमीन पर लेटा कर कुर्बानी देने के लिए चाकू चलाया तो उस चाकू के नीचे से नबी इब्राहीम के बेटे नही थे, बल्कि एक दुम्बा खुदा ने रखवा दिया था, और वो चाकू उस दुम्बे पर चल गया था, बस तब से लेकर आज तक कुर्बानी इस्लाम मजहब का हिस्सा बन गयी, कुर्बानी केवल ऊँट, भैसा, बकरा, दुम्बा इन्ही के नस्ल के पशुओं की ही होती है, और किसी पशु की कुर्बानी नही होती है, और किसी पशु की कुर्बानी जायज नही है, मै मुस्लिम समाज के लोगो से अपील करता हूँ, कि ईदुलजुहा का त्यौहार मनाये खुशी से लेकिन समुदाय की आस्था का ध्यान रखे , कुर्बानी के पशु के अवशेष आदि को नगर निगम के द्वारा भेजे वाहनो मे ही डाला ईधर उधर सडको रास्तो खुले मे ना डाले, खुले मे पशु जिबाह ना करे, इस्लाम मजहब एक शान्ति का मजहब है, जो नबी ए पाक सल्लल्लाहु अलैही वस्सलम का लाया हुआ है, और हम उसी नबी के मानने और चाहने वाले है, जिस नबी के ऊपर रोजाना रास्ते से गुजरते हुए कूडा डालती थी, एक दिन नबी ए पाक सल्लल्लाहु अलैही वस्सलम के ऊपर कूडा नही डाला गया तो आपने आस पडोस के लोगो से पूछा कि आज बुढियां ने कूडा नही डाला तो लोगो ने बताया की बुढियां सख्त बीमार है, आप ये सुनते ही बुढियां के पास हाल चाल जानने पहुँचे, और बुढियां को आवाज दी, बुढियां ने कहा कौन आपने बताया मै मुहम्मद ये सुनकर बुढी को बडा अहसास हुआ कि मै रोजाना कुडा डालती थी, और आप मुझे पूछने आ गये और ये देखने के लिए की दवा वगैरह की आवश्यकता तो नही है, तो इस्लाम मजहब को भाई चारे प्यार मुहब्बत का मजहब है, यही इस्लाम सिखाता है, आपस मे एक दूसरे के मजहब को बुरा ना कहो, तो इसलिए मुस्लमानो हम उसी नबी के चाहने वाले है, जिसने परेशानियों मुसीबत मे भी सब्र किया है, तो कुर्बानी करते समय दूसरे समुदाय की आस्थाओं का भी ख्याल रखे यही इस्लाम मजहब की पहचान है।
Post A Comment:
0 comments so far,add yours