HARIDWAR KI GUNJ
(अब्दुल सत्तार) हरिद्वार। हरिद्वार रोशनाबाद स्थिति आर०टी०ओ कार्यालय इस समय दलालो और घुस खोरो का जाति मकान बना हुआ है, जिसमे दलाली और घूस खोरी इस समय चरम पर विराजमान है, इससे पूर्व मे हमारे जिले के होनहार बुलंद हौशले के ईमानदार जिलाधिकारी दीपक रावत जी द्वारा खुद निरीक्षण किया गया था, जिसमे बाबू की सीट पर प्राईवेट आदमी बैठा पाया था, तो माननीय जिलाधिकारी महोदय ने काफी डांट आर०टी०ओ कार्यालय के कर्मचारियों को लगाई थी, उसके बाद वर्तमान मे भी आर०टी०ओ कार्यालय दलाली का अड्डा नही बल्कि दलालो का निजी मकान बनकर रह गया है, ई रिक्शा के लाईसेंस की सरकारी फीस ₹-220 है, लेकिन दलाल बडी ही चतुराई से दलाली करके पूरे ₹-1500 हासिल कर रहे है, सूत्रों से य भी पता चला है कि दलाल ये भी कहते हुए नजर आते है, कि हमारे निजी मकान मे जो मेहमान कुर्सियों पर बैठे काम कर रहे है, उनको भी तो पैसे देने पडते है, जिसे आप समाज अपनी भाषा मे रिश्वत या घूस कहेगा, तो बताए एक गरीब आदमी जिसने बडी ही मुश्किल से रिक्शा खरीदा, अब लाईसेंस बनवाने के लिए ₹-220 देने के बजाये एक हफ्ते की अपनी मजदूरी ₹-1500 देगा, यदि वो ऐसा नही करेगा तो दलालो की निजी मकान मे बैठे मेहमान ई रिक्शा वालो के लाईसेंस नही बनायेगे, तो आखिर कब तक समाज को दलालो के पैर चूमने पडेगे, और कब तक रिश्वत खोरी के कीडे से जूझना पडेगा, शायद भारतीय समाज भारत के भ्रष्टाचार से मुक्ति नही पायेगा ऐसा सरकारी कार्यालय और दलालो के व्यवहार से लगता है।
(अब्दुल सत्तार) हरिद्वार। हरिद्वार रोशनाबाद स्थिति आर०टी०ओ कार्यालय इस समय दलालो और घुस खोरो का जाति मकान बना हुआ है, जिसमे दलाली और घूस खोरी इस समय चरम पर विराजमान है, इससे पूर्व मे हमारे जिले के होनहार बुलंद हौशले के ईमानदार जिलाधिकारी दीपक रावत जी द्वारा खुद निरीक्षण किया गया था, जिसमे बाबू की सीट पर प्राईवेट आदमी बैठा पाया था, तो माननीय जिलाधिकारी महोदय ने काफी डांट आर०टी०ओ कार्यालय के कर्मचारियों को लगाई थी, उसके बाद वर्तमान मे भी आर०टी०ओ कार्यालय दलाली का अड्डा नही बल्कि दलालो का निजी मकान बनकर रह गया है, ई रिक्शा के लाईसेंस की सरकारी फीस ₹-220 है, लेकिन दलाल बडी ही चतुराई से दलाली करके पूरे ₹-1500 हासिल कर रहे है, सूत्रों से य भी पता चला है कि दलाल ये भी कहते हुए नजर आते है, कि हमारे निजी मकान मे जो मेहमान कुर्सियों पर बैठे काम कर रहे है, उनको भी तो पैसे देने पडते है, जिसे आप समाज अपनी भाषा मे रिश्वत या घूस कहेगा, तो बताए एक गरीब आदमी जिसने बडी ही मुश्किल से रिक्शा खरीदा, अब लाईसेंस बनवाने के लिए ₹-220 देने के बजाये एक हफ्ते की अपनी मजदूरी ₹-1500 देगा, यदि वो ऐसा नही करेगा तो दलालो की निजी मकान मे बैठे मेहमान ई रिक्शा वालो के लाईसेंस नही बनायेगे, तो आखिर कब तक समाज को दलालो के पैर चूमने पडेगे, और कब तक रिश्वत खोरी के कीडे से जूझना पडेगा, शायद भारतीय समाज भारत के भ्रष्टाचार से मुक्ति नही पायेगा ऐसा सरकारी कार्यालय और दलालो के व्यवहार से लगता है।
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